मुहर्रम क्यों मनाया जाता है MUHARRAM KYO MANAYA JATA HAI IN HINDI मुहर्रम का इतिहास इन हिंदी मोहर्रम के दिन क्या हुआ था? मुहर्रम कैसे मनाया जाता है
MUHARRAM हर साल मनाया जाता है लेकिन MUHARRAM क्यों मनाया जाता है क्या आप जानते है अगर नहीं जाने मुहर्रम का इतिहास क्या है इन हिंदी मुहर्रम इस्लाम धर्म के मानने वाले मनाते है यह एक गम का त्यौहार है

मुहर्रम क्यों मनाया जाता है – MUHARRAM KYO MANAYA JATA HAI
यहाँ जानिये मुहर्रम क्यों मनाया जाता है – MUHARRAM KYO MANAYA JATA HAI – इस्लाम का दुश्मन यजिद ईराक का बादशाह था जो पूरी दुनिया के इंसानियत का दुश्मन था मोहम्मद मुस्ताफ़ा सल्ल. के नवासे ईमान हुसैन रजी. ने जब यजिद को खुदा मानने से इनकार कर दिया तो यजिद ने आपके खिलाफ जंग का एलान कर दिया
इस जंग में हजरत हुसैन और परिवार बड़े बच्चे महिलाओ का क़त्ल कर दिया गया . जब क़त्ल हुआ तब इस्लाम का पहला महिना यानी की मुहर्रम का महीना था और तारीख इस्लामिक कैलेंडर अनुसार 10 तारीख थी . इसी कारण इस्लाम के मानने वाले नए महीने को नए साल के रूप में नहीं मनाते साथ ही इस महीने को गम और दुःख के रूप में मनाया जाता है .
अगर आप सोचते है मुहर्रम एक त्यौहार है तो आप गलत है क्योकि यह कोई त्यौहार नहीं बल्कि मातम मनाया जाता है और यह मुस्लिम रीती रिवाज का एक तरिका है .
मुहर्रम कैसे मनाया जाता है
इस तरह से मुहर्रम मनाया जाता है –
- मुहर्रम में जुलुस भी निकाला जाता है
- इस जुलुस में खुनी मंजर को याद किया जाता है
- इसलिए कर्बला की जंग में शहीदों को याद करने के लिए मासिया सूना जाता है
- जो इतना गम गिन होता है की आपके आँखों में आंसू भर दे
- इस दिन मुस्लिम भाई ताजिया भी बनाते है
- ताजिया का जुलिस लेकर अपने आस पास के क्षेत्रो में जो कर्बला होता है
- वह पर ले जाकर ताजिया को दफ़न कर देते है और यह मुहर्रम के 10वी तारीख को किया जाता है
- वही शिया लोग ताजिया के साथ अपने आप को कोड़े मारते है
- और अपने आप को लहू लुहान करके गम मुहर्रम को याद करते है
- इस्लाम मे मोहर्रम महीने के 9वे तारीख को रोजा रखा जाता है और माना जाता है
- इस दिन रोजा रखने वाले को 30 रोजे के बराबर सवाब मिलता है
अगर कोई व्यक्ति इस दिन सच्चे मन से रोजा रखे तो उसके गुनाहो की माफी हो जाती है यह रोजा रखना इस्लाम मे फर्ज तो नहीं है लेकिन इस रोजे को सुन्नत का दर्जा दिया गया है
कर्बला की लड़ाई क्यों हुई थी
इंसान को बेदार तो हो लेने दो हर कौम पुकारेगी हमारे हैं हुसैन।’
कर्बला की जंग सच और झूठ की लड़ाई थी कर्बला की लड़ाई मे एक तरफ मोहम्मद साहब के नवासे, अली के बेटे और फातिमा के जिगर के टुकड़े इमाम हुसैन के साथ थे
दूसरे तरफ ऐयाश व जालिम बादशाह यजीद और उसकी पूरी फौज थी यजिद ने यह बादशाही माली ताकत और जुर्म करके पाया था इस लड़ाई मे इमाम हुसैन की शहादत हुई ये शहादत केवल इस्लाम के मानने वालों के लिए नहीं थी वरन् पूरी इंसानियत के लिए थी
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